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ginni

Madhepura:बिहार के मुसलमानों को सभी दलों ने “अरुणधति तारे” का दर्शन कराया—अब आत्मनिर्णय का समय : मंसूरी

Madhepura:बिहार विधानसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में यह तथ्य स्पष्ट हो चुका है कि राज्य के मुसलमानों को हर बार केवल दिखावा और प्रतीकात्मकता प्रतिनिधितत्व दी जाती है, वास्तविक राजनीतिक हिस्सेदारी नहीं।

इस बार भी सभी राजनीतिक दलों ने मुसलमानों को मात्र “अरुणधति तारे” का दर्शन कराया है — दिखाया बहुत गया, पर दिया कुछ नहीं गया।

जहाँ बिहार की कुल जनसंख्या में मुसलमान लगभग 18% हैं, वहीं प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा दिए गए टिकटों का औसत अनुपात 5 से 6 प्रतिशत के बीच सिमट गया है। यह केवल उपेक्षा नहीं बल्कि एक योजनाबद्ध राजनीतिक दूरी है, जिससे मुसलमानों को बार-बार वोट बैंक के रूप में प्रयोग किया जा सके, पर उन्हें सत्ता और नीति-निर्माण की भागीदारी से दूर रखा जा सके।

वास्तविक स्थिति:

बिहार में मुस्लिम समाज का बड़ा हिस्सा अति पिछड़ा पसमांदा अरज़ाल वर्ग है — जैसे धुनिया, कुंजड़ा,अंसारी नट, फकीर,धोबी,दर्जी,रंगरेज, कलाल, बक्खो गद्दी, हजाम, भांट मीरशिकार डफाली गधेरी नालबंद कोल्हाईया सुरजापुरी शेरशाहबादी आदि 32 जाति EBC/OBC वर्ग से जो कुल मुस्लिम आबादी का लगभग 85% हिस्सा हैं शेष 15% की हालात भी चिन्ताजनक है शेख पठान और सय्यद जैसे सवर्ण मुस्लिम भी आबादी के अनुपात में धोखा खा गए यह भी विचारणीय बिंदु है ! प्रो. फिरोज़ मंसूरी ने कहा की तथाकथित सेक्युलर दल नहीं चाहते की अति पिछड़ा पस्मान्दा अरज़ाल का नेतृत्व उभरे अगर ऐसा होता है तो फिर इनकी दुकान बन्द हो जाएगी इसलिए वंचित समाज को इस दिशा मे जल्दी गंभीरता दिखानी होगी और अपने बीच से लीडरशिप खड़ी करनी ही होगी उन्हों कहा की बिहार विधानसभा चुनाव मे जाति गणना के हिसाब से किसी भी प्रमुख दल ने समुचित राजनीतिक प्रतिनिधित्व नहीं दिया।बल्कि 10% वालों ने तो पिछले सभी चुनाव का रिकार्ड तोड़ दिया एवं

प्रतिनिधित्व को कुछ चुनिंदा वर्गों और चेहरे तक सीमित रखकर मुस्लिम समाज की विविधता और सामाजिक वास्तविकता को दरकिनार किया गया।

अब आगे क्या?

अब समय है कि बिहार का मुसलमान अपने वोट की असली कीमत पहचाने।

“वोट देना” और “प्रतिनिधित्व पाना” — दोनों अलग बातें हैं।

मुसलमानों को अपने भीतर से शिक्षित, ईमानदार और जनसेवी नेतृत्व को तैयार करना होगा।

राजनीतिक दलों से टिकट की भीख नहीं, बल्कि न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व का अधिकार माँगना होगा।

अब यह समुदाय “किसे जिताएं” नहीं, बल्कि “कौन हमारा बने” — इसका निर्णय स्वयं करेगा।

हमारा स्पष्ट संदेश है —

> “बिहार का मुसलमान अब किसी दल का वोट बैंक नहीं, बल्कि एक निर्णायक राजनीतिक शक्ति है।”

यदि राजनीतिक दलों ने इस हकीकत को नहीं समझा, तो आने वाले समय में बिहार का मुसलमान अपनी नई राजनीतिक दिशा और नेतृत्व स्वयं गढ़ेगा।

प्रो. डॉ. फिरोज मंसूरी,राष्ट्रीय संयोजक,पसमांदा मुस्लिम समाज,पटना, बिहार drfiroz643@gmail.com

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