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Madhepura:कौन हैं बिहार के धनाराम चौधरी, जिन्होंने औरंगजेब के खिलाफ लड़ाई में मराठों का साथ दिया था।

Madhepura:पूरे भारतीय इतिहास में, अनगिनत हिंदू व सिख योद्धाओं ने मुगल शासन के खिलाफ़ विद्रोह किया, उनकी बहादुरी समय के पन्नों में अमर हो गई। महाराणा प्रताप, छत्रपति शिवाजी और गुरु गोबिंद सिंह जैसे नाम अत्याचार के खिलाफ़ उनके प्रतिरोध के लिए व्यापक रूप से जाने जाते हैं। हालाँकि, इन महान हस्तियों के बीच, कई ऐसे गुमनाम नायक हैं जिनके बलिदान गुमनामी में खो गए हैं। ऐसे ही एक भूले-बिसरे योद्धा हैं बाबू धनराम चौधरी, जो बिहार के एक बहादुर सेना नायक थे, जिन्होंने दक्कन में मुगलों के खिलाफ़ लड़ाई लड़ी थी।

कौन थे धनाराम चौधरी? -बाबू धनाराम चौधरी मुग़लकालीन योद्धा एवं जागीरदार थे। उनका संबंध तत्कालीन बिहार सूबा के मुंगेर सरकार के भागलपुर परगना के भरको नामक गाँव से था। भरको गांव वर्तमान में बांका जिले के अमरपुर प्रखंड में आता है। यहीं के एक यादव/अहीर परिवार में उनका जन्म हुआ था। उनका परिवार इलाके के बड़े जागीरदार थे और चौधरी कहलाते थे। उनके परिवार के पास टप्पा चंदुआरी, टप्पा चंदीपा और उसके आसपास के क्षेत्रों की मिल्कियत थी, जिसे संयुक्त रूप से तब ‘चंदुआरी राज’ या ‘चंदुआरी जागीरदारी’ कहा जाता था। इस जागीर की स्थापना 1599 ईस्वी में चौधरी चतुर्भुज नामक एक रईस अहीर ने की थी, इन्हीं के पीढ़ी में शोभाराम चौधरी का जन्म हुआ था जिनके पुत्र थे धनाराम चौधरी।

शासक परिवार में जन्म लेने के कारण धनाराम चौधरी को बचपन से ही शस्त्र एवं शास्त्र की शिक्षा दी गयी। वे घुड़सवारी एवं तलवारबाजी में निपुण थे। कम उम्र में ही उन्हें चंदुआरी राज का सेना प्रमुख नियुक्त कर दिया गया था।

औरंगजेब के साथ युद्ध में मराठों का सहायता –चौधरी परिवार हमेशा से ही अपनी विद्रोही भावना के लिए जाना जाता रहा है। धनराम से पहले भी, हेलमणि चौधरी ने 1657 में मुगलों के खिलाफ एक उल्लेखनीय विद्रोह का नेतृत्व किया था। प्रतिरोध की यह विरासत चौधरी परिवार में गहराई तक समाई हुई थी, और जब शिवाजी व उनके वंसजो के नेतृत्व में मराठों ने मुगलों के खिलाफ युद्ध अभियान शुरू किया, तो चौधरी परिवार को मुगलों के खिलाफ खड़े होने का एक और मौका मिला। भागलपुर में सीधे तौर पर जंग छेड़ने के बजाय, चंदुआरी राज के तत्कालीन जागीरदार जय नारायण चौधरी ने हिंदू मराठा शासकों को अपना समर्थन देकर एक रणनीतिक रास्ता चुना। जिसके बाद जागीरदार जयनारायण चौधरी ने मराठों की सहायता के लिए धनाराम चौधरी की कुशल नेतृत्व में 3,000 सैनिकों की एक सेना दक्कन भेजा।

धनाराम चौधरी कई वर्षों तक दक्कन में रहे एवं विभिन्न मोर्चों पर मराठों के साथ मिलकर युद्ध लड़ा और फिर बिहार लौट आये। भरको लौटने पर, 1705 में धनाराम चौधरी ने संभूगंज और मिर्जापुर के पास मौजा रुतपाई और सोनपाई में मुगलों के खिलाफ लड़ते हुए शहीद हुए सैनिकों के परिवारों को उनके भरण-पोषण के लिए 2,200 एकड़ जमीन दान किया।

धार्मिक उद्देश्यों के लिए दान किया सैंकड़ो एकड़ जमीन –
1759-60 में, धनाराम चौधरी व चंदुआरी के तत्कालीन जागीरदार हेमनारायण चौधरी ने टप्पा चंदीपा में विष्णु भगवान की पूजा और धार्मिक उद्देश्य के लिए 1,260 एकड़ भूमि दान में दी। इसके अलावा चंपानगर में चौकी-मंदिर निर्माण के लिए भी हेमनारायण के साथ मिलकर सैंकड़ो बीघा जमीन दान में दी। उस मंदिर का निर्माण स्वामी गोपालराम द्वारा 1757 ईस्वी में करवाई गई थी।

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