Madhepura:भूगोल विभाग में ‘वर्षा जल संचयन में आमजनों की सहभागिता’ विषय पर विश्वविद्यालय स्तरीय द्वि-दिवसीय सेमिनार का शुभारंभ प्रधानाचार्य प्रो. (डॉ.) अशोक कुमार की अध्यक्षता डॉ. राजेश कुमार सिंह के संयोजन में संपन्न हुआ। विषय विशेषज्ञ मुख्य वक्ता के रूप में विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर भूगोल विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अमित विश्वकर्मा और राजेंद्र मिश्र महाविद्यालय सहरसा के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अरुण कुमार और सहायक प्राध्यापक डॉ राम अवधेश कुमार उपस्थित थे। प्रधानाचार्य डॉ अशोक कुमार ने आज के कार्यक्रम को स्नातकोत्तर के छात्र-छात्राओं के लिए बहुत ही उपयोगी और विद्वतापूर्ण बताया। उन्होंने कहा कि कोसी क्षेत्र आज भले जल संसाधन के मामले में बहुत धनी है परंतु यदि जल संरक्षण के संबंध में सावधानियां नहीं बरती गयी तो अगले 50 वर्षों में हमारे सामने जल संकट की स्थिति उत्पन्न हो सकती है। आज हमारे मुख्य वक्ताओं ने वर्षा जल संचयन की विधियों पर बहुमूल्य विचार प्रस्तुत किये हैं जिसे हमारे आस पड़ोस, समाज और व्यापक रूप से समाचार पत्रों के माध्यम से प्रचारित प्रसारित करने की जरूरत है।
डॉ अमित विश्वकर्मा ने कहा की जल संरक्षण की यह विधि भारत सरकार से निर्देशित है तथा वर्षा के जल को संग्रहित करने में 21वीं शताब्दी में जल की आपूर्ति की दिशा में अपनी भूमिका प्रदर्शित करती है। 2.5 प्रतिशत फ्रेश वाटर की मात्रा को बढ़ाने तथा सूखे की स्थिति से जूझने की पहल करने वाली विधि तीन प्रकार की होती है-Top water harvesting, Surface water harvesting, and Sub-surface rainwater harvesting.यह विधि Raifall गुणांक तथा आवासीय भूमि के क्षेत्रफल पर निर्भर करती है। कृत्रिम रूप से भूमिगत जल के स्तर को बढ़ाने तथा मानसूनी वर्षा के जल को संग्रहित कर एक आम व्यक्ति इस तकनीकी में अपनी सहभागिता प्रदर्शित कर सकता है । इस विधि का कालांतर में प्रभाव का तीन स्तरों पर अध्ययन किया जा सकता है- पर्यावरणीय संतुलन, पारिस्थितिकी अवनयन की रोकथाम, तथा शहरी जल की पूर्ति तथा उपयोग।
राजेंद्र सिंह महाविद्यालय के भूगोल विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अरुण कुमार ने अपने संबोधन में ‘स्पंज सिटी के उपयोगिता’ विषय पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि आज वर्षा जल का दुनिया के बड़े-बड़े शहरों में स्पंज सिटी मॉडल को अपना कर जल का संचयन और उसके उपयोग पर बल दिया जा रहा है। जिससे बाढ़ के रोकथाम के साथ गर्मी के दिनों में संचय किए गए जल का उपयोग दैनिक क्रियाकलाप में किया जा सके। राम अवधेश कुमार ने कहा कि वर्षा जलसंचय हेतु वर्षा जल ग्रहण के लिए वनारोपन, लघु स्तर के प्रयास, तथा वृहद स्तर के प्रयास सभी होनी चाहिए। सरकारी नीतियों के अनुरूप हमें भी व्यक्तिगत स्तर पर सचेत होना चाहिए। डॉ राजेश कुमार सिंह ने कहा कि वर्षा जल के संचयन का विषय आज प्राकृतिक संसाधन के संरक्षण विषय का काफी चर्चित मुद्दा बना हुआ है। मानसून का अब प्रारंभ होने वाला है। ऐसी स्थिति में वर्षा जल के संरक्षण के प्रति आम आदमियों को जागरूक करने में हमारे छात्र-छात्राओं का योगदान महती होगा। समाजशास्त्र विषय के विभागाध्यक्ष डॉ. अक्षय कुमार चौधरी ने कहा कि जल संरक्षण और जल संचयन भूगोल विषय के दो अलग अलग शब्दावली है। भूगोल वेत्ताओं ने अपने अनुसंधान में वर्षाजल का संचयन की विधियों को विकसित कर वर्षा जल के संरक्षण के क्षेत्र में महत्वपूर्ण दायित्व निभा सकते हैं। मनोविज्ञान के प्राध्यापक व परीक्षा नियंत्रक डॉ ललन कुमार ने कहा कि वर्षाजल के संचयन कर हम एक तरफ तो भूमिगत जल के स्तर को संरक्षित कर सकते हैं वही दूसरी और अपनी कई दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति भी कर सकते हैं। संगोष्ठी में भूगोल विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ. गुंजन कुमारी, रसायन शास्त्र विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ राम प्रवेश कुमार, वनस्पति विज्ञान विभागाध्यक्ष डॉ राजीव जोशी, वनस्पति विज्ञान के प्राध्यापक डॉ अजय कुमार इत्यादि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।
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सेमिनार मे बेहतर आलेख प्रस्तुत करने के लिए स्नातकोत्तर द्वितीय एवं चतुर्थ सेमेस्टर की छात्र छात्राओं में मधुप्रिया को प्रथम, मुकेश कुमार को द्वितीय, नुजहत जनी को तीसरे, शंकर कुमार को चौथे और पलक को पांचमा पुरस्कार दिया गया। अवसर पर शशि कुमार, मुस्कान कुमारी, गुंजन कुमारी, खुशबू कुमारी, रूणा कुमारी, रेणु कुमारी, सोनी कुमारी, प्रीति कुमारी, रानी कुमारी, श्वेतमा, मुस्कुरान, कसाव मलिका, पूजा कुमारी, नेहा कुमारी, मुकेश कुमार, कुमारी मंजरी, इत्यादि ने भी अपने विचार प्रस्तुत किये।